यादों में लेखक
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हो रहा आगाज अब,ऋतुराज बसंत का।कोहरा छटता शनै: शनै:,शीत के अंत का।रंग घुलने लगा है,शीतल हवाओं में।संगीत सुनाई दे रहा
सरस्वती वंदना”हे भारती, वागेश्वरी, हे शारदा, हंसवाहिनी,हे वाग्देवी, महाश्वेता, हे ज्ञानदा, वीणावादिनी।हे वीणापाणी, वागीश्वरी, मां सरस्वती नमोस्तुते,हे ज्ञान दायिनी, अज्ञान
शोर है, चीख है, रुदन है और क्रदन भी है। नैन नीर से भरे, स्वर भी भय कंपन है। चहुँ
अगर कोई मुझसे ये पूछे, क्या हैं मेरे प्यार की परिभाषा। शब्दों में बयां करूँ ये मुमकिन नहीं, मेरे प्यार की
खामोश सी सड़क में , मैं कुछ खोयी-सी टहल रही थी,मुझे जिन्दगी से कुछ सवाल थे ,बस जिंदगी से ही
ये हवा, क्या कहे,इस तरह, क्यूॅं बहे।छू कभी, मन जरा,गुदगुदा, तन जरा। कह रही, भावना,हृदय की, कामना।बज रही, रागिनी,सज