कविताएँ
दीप हाथ में लिए कर रही संकल्प मैं,अब से अपने लक्ष्य को दूंगी न विकल्प मैं।इस दीप की बाती सी जलती रहूं प्रतिपल भले,किंतु हृदय में कभी संकीर्णता न पलें।धरातली बन सदा दीप माटी का रखूंगी,हौंसले का तेल इसमें कभी न खत्म होने दूंगी।हवाएं जोर बांध लें, तूफान भी उदंड हैं,बुझा सका न लौ अरि,जीवट जो अखंड हैं।मैं जोत वो जिसके समक्ष तम कभी टिकता नहीं,हैं प्रताप ऐसा कि अंधकार से घिरता नहीं।खोती नहीं अस्तित्व जो दिनकर के भी तले,वही जोत हूं मैं जो माता के दर पर जले।हो साया जिसके शीश पर स्वयं मां भवानी का,वो समंदर बन के रहते हैं, करते न भय रवानी का।
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सुमेरु छंद1222 1222 122डगर अपनी अभी उलझी नहीं है,मिली मंजिल न थी लेकिन कहीं है,सफर ये जिंदगी माना कठिन था,चली
कविताएँ
ऑपरेशन सिंदूर
सिंदूर ने सिंदूर का,क्या गजब सिला लिया।नाराजगी तो बाकी है,अभी तो बस गिला किया। खफा जो हम हो गए तो,नाराज
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माहिया छंद
माता रानी को मेरा एक प्रयास समर्पित 🙏🏻🙏🏻 माहिया छंद आयी शेरों वाली,दर्शन देने को,भरने झोली खाली। दुर्गा, नैना, काली,मेरी
कविताएँ
प्रथम नवरात्रि, माता शैलपुत्री की कथा
नव दुर्गा की प्रथम स्वरूपा,प्रथम रूप शैलपुत्री मां।पर्वतराज हिमालय सुता,कहलायी शैलपुत्री मां।नवरात्रि के प्रथम दिवस में,मां शैलपुत्री का पूजन होता