कविताएँ
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सुमेरु छंद1222 1222 122डगर अपनी अभी उलझी नहीं है,मिली मंजिल न थी लेकिन कहीं है,सफर ये जिंदगी माना कठिन था,चली
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ऑपरेशन सिंदूर
सिंदूर ने सिंदूर का,क्या गजब सिला लिया।नाराजगी तो बाकी है,अभी तो बस गिला किया। खफा जो हम हो गए तो,नाराज
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माहिया छंद
माता रानी को मेरा एक प्रयास समर्पित 🙏🏻🙏🏻 माहिया छंद आयी शेरों वाली,दर्शन देने को,भरने झोली खाली। दुर्गा, नैना, काली,मेरी
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प्रथम नवरात्रि, माता शैलपुत्री की कथा
नव दुर्गा की प्रथम स्वरूपा,प्रथम रूप शैलपुत्री मां।पर्वतराज हिमालय सुता,कहलायी शैलपुत्री मां।नवरात्रि के प्रथम दिवस में,मां शैलपुत्री का पूजन होता
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काश मैं होती
काश मैं होती लिखने बैठी आज अचानक , सोचा मेरी चाहत हैं क्या। क्या इच्छा हैं दिल की मेरी , इन
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शब्द भाव जब मिलें
शब्द भाव जब मिले वक्त कुछ तन्हा सा था,खामोशी कुछ कहने लगी।कवि मन बेकल हुआ,मन में एक आस जगी।आस भाव