कविताएँदीप हाथ में लिए कर रही संकल्प मैं,अब से अपने लक्ष्य को दूंगी न विकल्प मैं।इस दीप की बाती सी जलती रहूं प्रतिपल भले,किंतु हृदय में कभी संकीर्णता न पलें।धरातली बन सदा दीप माटी का रखूंगी,हौंसले का तेल इसमें कभी न खत्म होने दूंगी।हवाएं जोर बांध लें, तूफान भी उदंड हैं,बुझा सका न लौ अरि,जीवट जो अखंड हैं।मैं जोत वो जिसके समक्ष तम कभी टिकता नहीं,हैं प्रताप ऐसा कि अंधकार से घिरता नहीं।खोती नहीं अस्तित्व जो दिनकर के भी तले,वही जोत हूं मैं जो माता के दर पर जले।हो साया जिसके शीश पर स्वयं मां भवानी का,वो समंदर बन के रहते हैं, करते न भय रवानी का। hemashilpi / 21/10/2025