मेरे रूप अनेक
मैं माता, मै बहन,मै पत्नी रूप में अर्धांगिनी हूँ , मैं जीवन के इस अनंत सफर में तेरी जीवनसंगिनी हूँ। मैं नदी की धारा हूँ जो निश्छल कल – कल बहती है, मैं वह निर्मल शान्त पवन हूं जो प्रकृति के कण – कण में बसती हैं। मैं सूरज की वह किरण हूँ जो,जन – जन को जागृत करती हैं, मैं वह आस हूँ मन की जो सदैव समर्पित रहती हैं। मैं वह रचना हूँ ईश्वर की जो सृष्टि रचने आयी हैं, कभी लक्ष्मी , कभी सरस्वती जो माँ शक्ति, काली कहलायी हैं।ममता, स्नेह, करुणा, प्रेम, दया, वात्सल्य मेरे सारे रूप यही हैं, पर इन रूपों के निर्वहन में कितने बार मेरे नेत्रों से अश्रु धार बही हैं।पावन – पवित्र जीवन रथ की सारथी, सुख दुःख की मैं साधक हूँ, जो कभी संकट में हो मेरा मान – सम्मान तो फिर मैं सृष्टि संहारक हूँ।जन्म लेकर किसी कुटुम्ब में, पर कुटुम्ब में अपना जीवन खोती हूँ मैं,स्त्री रूप में जन्म लिया हैं ये महसूस कर गौरवान्वित होती हूँ मैं।