सरस्वती वंदना”
हे भारती, वागेश्वरी, हे शारदा, हंसवाहिनी,
हे वाग्देवी, महाश्वेता, हे ज्ञानदा, वीणावादिनी।
हे वीणापाणी, वागीश्वरी, मां सरस्वती नमोस्तुते,
हे ज्ञान दायिनी, अज्ञान नाशिनी, मां शारदे नमोस्तुते।
मां शारदे कृपा करो, एक ज्ञान ज्योति प्रज्वलित करो।
गहन अज्ञान तम चहुँओर है, हे मातु जग से यह तम हरो।
भूलकर संस्कार सब नर, नर से नराधम हो रहे,
तू दान दे सद्वृत्ति का, मनु पथ से पथभ्रष्ट हो रहे।
दे विद्या, बुद्धि, सद् वाणी, सद्गुणों का हिय में प्रवाह कर,
जिस मन में तम ही तम है मां, वहां ज्ञानोचित प्रकाश कर।
शिक्षा वेद, पुराणों की, अस्तित्व अपना खो रही,
तू थाम मानव चित का कर, क्यूं मनोवृति चंचल हो रही।
वाणी में अपना वास कर, कंठ को मधुर सुर दान दे,
मां शारदे इस संसृति को, तू विद्या का वरदान दे।
तू देवी विद्या, बुद्धि की, ज्ञान की, संगीत की,
तू दे गति, तू दे मति, तू लय हैं जीवन गीत की।
मां कृपालु कर कृपा ये जीवन संवार दे,
तू ज्ञान का वरदान दे, अज्ञानता से तार दे।