जिसे हमसफ़र बनाकर कदम – कदम ताउम्र साथ चलते रहे हम,
जिससे रात – दिन, पल – पल का साथ निभाते रहे हम।
जिसके हर लम्हें को बड़ी शिद्दत से जीना चाहते थे,
जिसे सँवारने को सबसे ज्यादा बेसब्र रहे हम।
जिसकी ख्वाहिशों के लिए दोनों हाथ उठाये रब सामने,
जिसके साथ दूर तक चलने के लिए मन्दिर – मस्जिदों में शीश झुकाते रहे हम।
जिसे हर साँस के साथ मुस्कुराकर जीते रहे अब तक,
जिसके दिए हर आंसू, हर दर्द को गीत बनाकर गुनगुनाते रहे हम।
जिसे अपने हर जर्रे – जर्रे में कुछ तरह से शामिल कर लिया हमने,
जिसके साथ खुशनुमा वक़्त बिताने के साज़ों – सामान जुटते रहे हम।
वक़्त धीरे – धीरे गुजर रहा था और हम उसकी चाहत में ही डुबे रह गए,
उस मनमोहिनी के प्रेम – पाश में बस यूं ही बँधते रहे हम।
वो साथ चल रही हैं ये सोच हम बेख़ौफ़ हो गए,
और उसकी रफ़्तार के साथ अपनी रफ़्तार बढ़ाते रहे हम।
वो हमसफ़र, हमकदम, हमराज बनकर साथ चल रही थी,
और उसकी मोहब्बत में फ़ना उसको अपना हमदम समझ रहे थे हम।
वो जिन्दगी थी जो बेवफ़ाई कर गयी एक रोज़ हमसे,
जिससे मोहब्बत में बफ़ा की उम्मीद कर रहे थे हम।
और वो मौत थी उम्र भर जिसका ख्याल तक कभी ना लाए दिल में,
उसको ही बेक़रारी से अपनी तरफ आता देख रहे थे हम।
जब मौत हमें अपनी बाँहों में समेटे इकरार – ए – मोहब्बत कर रही थी,
तब बेवफ़ा जिन्दगी को दामन छुड़ाकर दूर जाते तरसती निगाहों से देख रहे थे हम।
जिन्दगी उम्र भर साथ निभाकर अन्त में बेवफ़ाई कर जाती हैं दोस्तों,
और अनचाही मोहब्बत जैसी मौत की आगोश में सिमटकर रह जाते हैं हम।