खामोश सी सड़क में , मैं कुछ खोयी-सी टहल रही थी,
मुझे जिन्दगी से कुछ सवाल थे ,बस जिंदगी से ही गुफ्तगू कर रही थी।
सामने धुंध के बीच एक नन्हीं -सी बच्ची दिखाई दी,
उसके क़दमों के साथ उसकी ख्वाहिशों की आहट – सी सुनाई दी।
यूं ही होठों पर हल्की -सी मुस्कराहट के साथ ,
वो नन्हीं -सी परी का लेकर हाथों मे लेकर हाथ।
मैंने बस यूं ही पूछ लिया ,बेटा क्या हो गया हैं ,
कुछ ढूंढ रही हो शायद कुछ खो गया हैं।
नीरज से निश्छल नैनों से;वो मुझे देख हल्का -सा मुस्कुरायी ,
मुस्कुराते हुए कमल नयनों से ज्यौं ही उसने पलकें उठायी।
यूं लगा जैसे दो मोतियों को कमल पंखुड़ियों ने ढक लिया हो ,
निःस्वार्थ भाव की परिभाषा को आँखों -आँखों में कह दिया हो।
कहने लगी खोता उनका हैं जिनके पास खोने को कुछ होता हैं ,
उसका क्या खोएगा जो कुछ पाने का सपना लेकर सोता हैं।
मैं तो माँ के लिए रब कुछ मांगने जा रही हूँ ,
मेरे पीछे मेरी परछाई चल रही हैं बस उसी से बतिया रही हूँ।
मैं पूछा ऐसा क्या मांगने जा रही हो ,
जिसे अपनी प्यारी -सी मुस्कराहट के पीछे छुपा रही हो।
अगर मैं दे सकूं तो क्या मैं वो तुम्हें दे दूँ ,
उसके बदले तुम्हारे होठों पर खिलखिलाती हँसी देख लूँ .
वो बोली अगर होती मेरी मुस्कराहट अनमोल तो ,
मैं अपनी माँ के लिए एक छोटी -सी ख़ुशी खरीद लेती।
बिकते अगर ज़माने में जो गम हैं मेरी माँ के पास ,
तो उनके बदले मैं माँ के होठों की हँसी खरीद लेती।
बस इतना सा कह कर वो ;अपनी राह पर चली गयी ,
मानों एक ही पल में जिन्दगी का सबक सीखा गयी।
नादान हैं वो जो ज़माने में खुशियों के लिए भटकते हैं ,
खुशियों की ख्वाहिशों में खुशियों के सामान खरीदते हैं।
इतनी अनमोल मुस्कराहट को होठों पर सजाने की फुरसत नहीं हैं ,
दिखावे का मुखौटा पहन कर खुद को खुशनसीब समझते हैं।