अगर कोई मुझसे ये पूछे,
क्या हैं मेरे प्यार की परिभाषा।
शब्दों में बयां करूँ ये मुमकिन नहीं,
मेरे प्यार की इतनी – सी परिभाषा।
मधुर स्वर बजता जैसे,
सांसों से मुरली को छूकर।
सात सुरों में बसकर जैसे,
सरगम सुरम्य होती हैं।
जैसे दीपक का आधार पाकर,
बाती पाती हैं ज्योति।
जैसे ठंडी पवन हैं पल – पल,
प्रकृति के कण – कण में बसती।
पलकों के सीप पर जैसे,
रात को सपने बनते हैं मोती।
जैसे ओंस की बूँदें तिनकों पर,
अपना जीवन प्यार से खोती।
जैसे क्षितिज के पार गगन से,
स्वयं को भूल धरती हैं मिलती।
जैसे दिन से रात के मिलन पर,
श्यामल साँझ सलौनी खिलती।
वैसे ही ओ मेरे साजन,
मैं स्वयं को आप पर समर्पित करती।
अपने जीवन के हर पल – छिन को,
आपके प्रेम में अर्पित करती।
मैं तो हूँ एक माटी की मूरत,
मेरी साँसें आप में बसती।