जागती आँखों का सपना –

तन्हाई का घेरा था,
मेरा दिल भी अकेला था।
दिल खामोश और आँखें खोई थी,
आँखें जागी पर मैं सोई थी।
अचानक से दिल में दस्तक हुई,
कोई नहीं था फिर भी हलचल हुई।
ये म्रेरे दिल का कोई अरमान था,
या शायद किसी का इंतजार था।
मुझे नहीं पता कि वो था कौन,
हर चीज तो थी अपनी जगह पर मौन।
एक बार फिर से दस्तक हुई ऐसे,
किसी ने देखा झाँक कर झरोखे से जैसे।
देखा तो बड़ा ही प्यारा नजारा था,
सपनों का समन्दर और आँखों का किनारा था।
ठंडी हवा और कुछ किरणें भी साथ थी,
हर डाल पर पंछी, हर पत्ते पर ओंस थी।
चिड़ियों की चहचाहट, कोयल का मदमस्त गान था,
पंछी खुले आकाश में और भँवरा बागों में आज़ाद था।
तितलियाँ मानों अपने रंगों पर इठला रही हो,
और कलियाँ झूम – झूम कर पवन संग बतिया रही हो।
तभी एहसास हुआ दिल में कुछ ऐसे,
मानों मुझे देख रहा हो छुप कर कोई जैसे।
देखा जो पलट कर हैरान रह गयी,
आँखें खुली की खुली रह गयी।
पर शायद मैं कुछ और सोच पाती,
तभी पलकों ने आँखों पर आकर डाल दिया डेरा,
खिड़की से झाँका तो किसी ने नाम पुकारा था मेरा।
कुछ पल तो सोचा कि आखिर कौन था वो,
फिर समझ गयी कि “एक हसीन ख्वाब था वो।