प्रिय पाठकों
आप सभी को गणतंत्र दिवस की ७६ वीं वर्षगाँठ की हार्दिक शुभकामनायें ,
सर्वविदित हैं कि आज हमारे देश के कोने – कोने में गणतंत्र दिवस की धूम हैं। आज हम गणतंत्र दिवस की ७६वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। गणतंत्र दिवस प्रति वर्ष २६ जनवरी को मनाया जाता है। इस दिन सन् १९५० को भारत सरकार अधिनियम [एक्ट १९३५ ] को हटाकर भारत का संविधान लागू किया गया था। एक स्वतंत्र गणराज्य बनाने और देश में कानून का राज स्थापित करने के लिए संविधान को २६ नवंबर १९४९ को भारतीय संविधान सभा द्वारा अपनाया गया और २६ जनवरी १९५० को इसे एक लोकतान्त्रिक सरकार प्रणाली के साथ लागू किया गया था। , इसलिए प्रतिवर्ष देश के हर कोने- कोने में गणतंत्र दिवस धूम- धाम से मनाया जाता हैं।
किसी भी देश का सविधान उस देश की आत्मा होता है। भारतीय संविधान भी आजाद भारत की आत्मा है। , संविधान का निर्माण करते समय कई देशो के संविधानो में समाहित गुणों का समावेश इसमें किया गया हैं। तथा संविधान में वर्णित समस्त नियमों , अधिकारों व कर्तव्यों का पालन करने हेतु सशक्त कानून की व्यस्था की ;विश्व -बंधुत्व , सर्वधर्म – समभाव व धर्मनिरपेक्षता हमारे संविधान के मूल -तत्व है। इन्ही मूल -तत्वों को दृष्टि में रखते हुए संविधान निर्माताओं ने भारत के उज्जवल भविष्य का सपना संजोया था।
पर क्या आज हमारे देश का स्वरुप वैसा ही हैं ,जिस स्वरुप का सपना देख संविधान का निर्माण किया गया था ? शायद नहीं ,या मैं अपने विरोधी स्वर में कहूं तो बिल्कुल भी नहीं। क्योंकि जिस विश्व -बंधुत्व का सपना देखा गया था वो तो आज परिवार तक भी सीमित नहीं रह गया हैं। और जहां तक बात हैं सर्वधर्म -समभाव की तो वो तो आजकल रोज ही अख़बारों के मुख्य समाचार होते हैं कि किस तरह से आज एक मात्र वोट के लिए हमारे राजनेता आरक्षण के नाम पर समाज में दंगें करवाते हैं। और आम जनता की गरीबी ,जरूरतों का फायदा उठा कर उनकी भावनाओं के संग खिलवाड़ करते हैं। मेरा तो मानना यहाँ तक हैं कि अगर कहीं हमारे देश से जात – पात ,ऊँच -नीच ,तेरा धर्म मेरा धर्म संबंधी धार्मिक भेद – भाव की आग बुझ जाएं तो हमारे समाज के ठेकेदार व देश के राज करने अपने घर की रोटियां किसमें सकेंगें। और भ्रष्टाचार की तोंद को फूलाने के लिए तो इस आग का जले रहना अनिवार्य हैं। |अब बात आती हैं, धर्म -निरपेक्षता की तो सर्वविदित हैं कि हमारा देश धर्मनिरपेक्ष हैं। यहाँ पर सभी जाति धर्म के लोग निवास करते है। पर आंतरिक रूप से मजहबी विवाद भी समय -समय हमारे समाज में दृष्टिगोचर होते ही रहते हैं। ये हैं हमारे समाज का अशोभनीय स्वरुप। जिसमें हमारे देश में प्रतिदिन चोरी ,डकैती ,भ्रष्टाचार ,शीलभंग ,रिश्वतखोरी जैसे कृत्य द्रष्टव्य होते ही रहते हैं। जिनका कि हमारे संविधान में कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता हैं ,और जो संविधान में उल्लेखित हैं, वो दूर -दूर तक कहीं भी दृष्टिगोचर हैं ? अफ़सोस होता हैं अपने देश की ऐसी सोच व ऐसी दशा देख कर।
क्या ऐसा नहीं हो सकता कि आज गणतंत्र दिवस के दिन ये प्रण करे कि हम हमारे देश के संविधान में वर्णित विधि का ,कर्तव्यों का ,अधिकारों का पालन करेंगें जो हमारे देश को उत्कर्ष की ओर उन्मुख करे। तथा साथ सभी विद्यालयों में किसी भी राष्ट्रीय पर्व के उपलक्ष्य में उत्सव मनाने के साथ -साथ छात्र – छात्राओं को राष्ट्रीय पर्वों के विषय में समुचित जानकारी भी प्रदान करें ,और विद्यार्थियों में अनुशाशन की भावना लाएं। ताकि बच्चों में हमारे राष्ट्रीय पर्वों के प्रति सम्मान की भावना आयें। भले ही आज हमारा देश संविधान के उद्देश्य को पूर्ण न करता हो पर ये तो हो सकता हैं कि भविष्य में अतीत में देखा गया सपना पूर्ण हो जाएँ। यदि हम स्वयं में संकल्पित होकर के स्वयं किसी भी प्रकार की असंवैधानिक व्यवहार को न अपनाएं और ना ही उसका समर्थन करें। तो धीरे-धीरे संविधान का यह सपना पूर्ण करने के लिए एक दिन लोगों का कारवां स्वयं बन जाएगा। आज के यह ओरण अवश्य लें।