Merikalamse

गज़ल

गज़ल

बहर – 212 212 212 212

काफिया – अने (व्यंजन काफिया)

रदीफ़ – लगी

वक्त ने जब कहा मैं ठहरता नहीं,
जिंदगी मुस्कुरा साथ चलने लगी।

कह सके हम न जो बात दिल की कभी, मौन आंखें वही बात कहने लगी।

बात इतनी कि वो प्यार समझे नहीं, दूरियां प्यार के नाम बढ़ने लगी।

इश्क की हर कशिश आज है दरमियां, क्यों शिकायत मगर रोज रहने लगी।

अनकहा रह गया कुछ बता क्या कहीं, ख्वाहिशें क्यों गिला आज करने लगी।

भोर कहता मुझे बेवजह क्यों भला,
शाम की तरह मैं देख ढलने लगी।

आ गया है सनम उम्र का वो पहर,
आंख शिल्पी सभी भाव पढ़ने लगी।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top