नववर्ष की इस नव प्रभात में,
एक नव जीवन का प्रारम्भ करें।
नवजीवन की इस फुलवारी में,
सुख सुमन के नव कोंपल पल्ल्वित करें।
सुखमय नव पल्ल्वित कोंपलों को,
सुसंस्कारों से सुरभित करें।
संस्कार,शिक्षा, सुचरित्र,स्वास्थ्य चार स्तम्भ हैं,
इन चार स्तम्भों को जीवन में स्तम्भित करें।
व्यवहार हमारे जीवन का दर्पण कहलाता है,
इसलिए प्रति स्तम्भ को व्यवहार से परिभाषित करें।
सद्गुण, शालीनता,धैर्य, दया, परोपकार कई अलंकार हैं ऐसे,
पर सर्वप्रथम सुमधुर वाणी से व्यवहार को श्रृंगारित करें।
जब श्रृंगारित व्यवहार से अंतर्मन निहित भाव दृष्टव्य हो जाएँ तो,
स्वयं को एक सभ्य समाज में स्थापित करें।
माना नए परिवेश में सभ्य समाज कल्पना मात्र रह गयी हैं,
तो स्वयं को स्थापित करने हेतु सभ्य समाज निर्मित करें।
समाज निर्माण हेतु शिक्षित जन – समूह ही आवश्यक नहीं हैं,
समाज के लिए कुछ उत्कृष्ट उद्देश्य भी निर्धारित करें।
उत्कृष्ट उद्देश्यों में स्त्री – रक्षा, मान – सम्मान को स्थान अवश्य दें,
मात्र बेटियों को ही नहीं अपितु बेटों को भी पर्याप्त मर्यादित करें।
सन्तान को दिखावे की प्रतियोगिता में खड़ा करने से पहले,
अति आवश्यक हैं कि उन्हें संस्कारों से संस्कारित करें।
यदि संस्कारित समाज की नींव में सन्तुलन रखना हैं तो,
जीवन को नित नैतिक मूल्यों से प्रमाणित करें।
नैतिक मूल्य गहन अंधकार के बीच जलता हुआ एक दीप हैं मानो,
चलो इस दीप से अपना जीवन हम प्रकाशित करें।
प्रकाशमय इस राह पर लम्बा सफर तय करने के लिए,
निर्णय ले कि आज से खुद को अनुशासित करें।
अनुशासित जीवन आपको चरमोत्कर्ष तक ले जाएगा,
इस नव वर्ष में आइये स्वयं को श्रेष्ठ मानव के रूप में सुशोभित करें।