होली का गीत
काहे रंग डाले हैं बैरी सावंरिया,
भीग जाएं लट मेरी भीगी चुनरिया।
डाले अबीर काहे, डाले गुलाल क्यों,
पकड़े कलाई मेरी रंग डाले गाल क्यों।
कैसे समझाऊं तुझे,समझ ना पाएं तू,
होंठों से कहूं नहीं, नैन पढ़ न पाएं तू।
मुझ पर चढ़े न पिया,
मुझ पर चढ़े ना पिया रंग इस बहार का,
अंग अंग रंग मेरे रंग तेरे प्यार का।
काहे रंग डाले ——-
झूम झूम फाग गाऊं ,गीत गाऊं प्यार का,
आया हैं रंग ले के मौसम बहार का।
बरसा है प्यार तेरा बन के बदरिया,
सतरंगी कर दी तूने पीली चुनरिया।
लुक छुप फिरूं मारे भर पिचकारी,
ऐसे उड़ाएं रंग भीगी अंगियां सारी।
काहे न माने बैरी,
काहे न माने बैरी हंसती है सखियां,
जानूं छुप छुप देखे ये तेरी अंखियां।
काहे रंग डाले—–
कान्हा बन सखियों को रंगना न बैरी,
तू मेरा कान्हा मैं राधा हूं तेरी।
रंग चाहे जिस रंग उस रंग रंग जाऊं,
ले चल तू चाहे जहां मैं तेरे संग आऊं।
लाई बसंत ऋतु रुत ये बहार की,
होली में प्यार के रंग की फुहार की।
कैसी ये डोर पिया,
कैसी ये डोर पिया तेरे संग प्रीत की,
जोगन बन के फिरूं अपने मन मीत की।
काहे रंग डाले —–