Merikalamse

दोहे

दोहे

पावन गंगा में करें, जो नर नारी स्नान।
तन मन निर्मल आप हो, कहें यही विद्वान।। (१)

सुरसरि तन निर्मल करें, धुले न मन का पाप।
उजली काया नाम की, भीतर तम संताप।। (२)

कोटि देव के चरण में, कर लें जप तप योग।
संगम तीरथ से नहीं, मिटें कर्म का भोग।।(३)

अगर शुद्ध हो स्नान से, लाएं कामी चोर।                                                                                 भोगी मन की शुद्धि हो, राम राज्य चॅंहु ओर।। (४)

संत मध्य भी मलिन मन, भूले नहीं पाखंड।
पावन संगम तीर्थ में, कु कृत्य करें उदंड।(५)

चोला पहने साधु का, भस्म रमा कर आप।
काम मोह में लिप्त है, मुख पर हरि का जाप।।(६)

आत्म शुद्धि अनुताप बिन, मिले न किसी धाम।
माला मणि धारण करें, जप लें हरि हर नाम।। (७)

सुगम राह है साधु की, जटिल भाव है संत।
स्पृहा रहित तन जीव का, आत्म त्याग अनंत।(८)

कंचन, कांता, कीर्ति से, योगी करें न प्रेम।                                                                                मन में मूरत राम की, तन से नियमित नेम।। (९)

भोग कामना से विरत, चेतन तत्व प्रबुद्ध।                                                                          सात्विक गुण प्राबल्य हो, शास्त्र ज्ञाता विशुद्ध।। (१०)

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