Merikalamse

काश मैं होती

काश मैं होती 

kash men hoti, meri kalpana

लिखने बैठी आज अचानक ,

सोचा मेरी चाहत हैं क्या। 

क्या इच्छा हैं  दिल की मेरी ,

इन शब्दों का मतलब हैं क्या।  

मैनें  खुद को खुद में ढूँढा ,

पायी एक नन्हीं -सी अभिलाषा।  

kash main hoti

चाहा पंछी बन उंडू गगन में ,

समझने लगूँ पंछियों की भाषा।  

बैठू पेड़ों की डाली – डाली ,

उंडू गगन में पंख -पसार। 

कभी खेलूँ धरा  की गोद में ,

पाऊँ गगन का स्नेह -अपार।  

kash main hoti


काश मैं होती पवन  का झोंका ,

 हर पर्वत को छूकर उड़ती।  
मुझे रोकती ना कोई सरहद ,

हर  सरहद को तोड़ कर उड़ती।  

मैं प्रकृति के कण -कण में रहती  ,

मैं नदियों के संग -संग बहती। 

उस बादल से बातें करती ,

हरियाली के संग लहलहाती। 

kash main hoti

या मैं होती बहती नदियाँ ,

लहर की भाँति उठती -गिरती।  

समझ तो पाती लहरों का जीवन ,

क्यों वो पत्थरों की मार को सहती। 

क्यों रगड़ कर अपने तन को ,

दूसरों को जीवन -रस देती। 

क्या मंजिल हैं उस लहर की ,

जिसके लिए वो निरन्तर बहती।  

हर पत्थर की ठोकर पर वो ,

छिन्न -भिन्न हों फिर जुड़ जाती।  

ठोकर सहें हर लहर ख़ामोशी से ,

क्यों जुड़कर फिर वो कल -कल गाती।  

kash main hoti


काश  मैं होती ओंस की बूँद ,

 जो नभ से गिरकर धरती पर सोती।  

तो जानती मैं  उस तिनके की चाहत ,

जिस पर ओंस हैं अपना जीवन खोती।  

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