सिंदूर ने सिंदूर का,
क्या गजब सिला लिया।
नाराजगी तो बाकी है,
अभी तो बस गिला किया।
खफा जो हम हो गए तो,
नाराज हम जो हो गए तो।
यह हाल आह भर का है,
हुंकार हम जो भर दिए तो।
वार कर सिंदूर पर,
जो भाल मान अवशेष।
खौफ छोड़ आंखों पर,
अबला समझ जो छोड़ी शेष।
उसी का रूप बन कराल,
दृगों में ले धधकती ज्वाल।
आ खड़ी तेरे कपाल,
बन के वो मृत्यु काल।
ले संकल्प तेरी मृत्यु का,
सिंदूर वाले माथ में।
बढ़ चली बारूद ले वो,
मेहंदी लगे हाथ में।
आ गया वो वक्त आज,
आतंक का संहार हो।
सिंदूर को बचाने आज,
रण चण्डी का अवतार हो।
ज्वाला प्रतिशोध की,
सीने में धड़क रही।
शत्रु वक्ष चीरने को,
धड़कने धड़क रही।
बन के दामिनी वो देख,
अंबर में जा चमक रही।
मिसाइल से निकलती आग,
ललकार नभ में कर रही।
जा कहीं भी भाग जा,
किसी बिल में जा के बैठ जा।
बचाने खुद को मुझसे तू,
आतंकी दम लगा ले जा।
अब नहीं बचेगा तू,
बिल से निकाल लाऊंगी।
तू पीछे से घात करता है,
मैं सामने से मारूंगी।
तेरे हर वार पर,
मेरा प्रहार भारी है।
अग्नि वृष्टि कर रही जो,
आज की ही नारी हैं।